भीलवाड़ा के जानकी लाल भांड को पद्मश्री अवॉर्डः भांड कला को आपने 3 पीढ़ियों से जिंदा रखा; मंकी मैन के नाम से हैं राजस्थान जी के की किताबों में मशहूर
श्रेष्ठ शिक्षा सम्पादक सम्पत शर्मा मो. 8005609329
26 जनवरी 2024 की पूर्व संध्या पर बहरूपिया कला के लिए भीलवाड़ा के जानकीलाल भांड को पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है। देशभर से 34 नामों में से जानकीलाल का नाम भी शामिल है, जिन्हें पद्मश्री पुरस्कार 2024 के लिए चुना गया है।
बहरूपिया बाबा के नाम से मशहूर जानकी लाल एक बहरूपिया कलाकार हैं, जो समाप्त होती इस कला को आज भी जिंदा रखे हुए हैं। वे भीलवाड़ा सहित देश-विदेश में अपनी बहरूपिया कला को प्रदर्शित कर चुके हैं और लगभग 60 सालों से इस कला को दिखा रहे हैं। 83 साल के जानकीलाल के अनुसार, यह कला विरासत में मिली है और इससे पहले उनकी तीन पीढ़ियां इस बहरूपिया कला के प्रति समर्पित रही है।
जानकीलाल उम्र के इस पड़ाव में भी इस बहरूपिया कला को जारी रखे हैं। कला के प्रति उनके इसी लगाव को देखते हुए सरकार ने उन्हें पद्मश्री अवार्ड 2024 के लिए चयनित किया है। पद्मश्री अवॉर्ड की घोषणा होने के बाद उनके परिवार में खुशी का माहौल है।
उन्होंने ग्लासगो, बर्लिन, न्यूकेसल, लंदन, न्यूयॉर्क, दुबई, मेलबोर्न में भी अपनी कला की प्रस्तुतियां दीं हैं। वे होली व अन्य त्योहार पर शहर में अपनी कला से लोगों का लोकानुरंजन करते रहे हैं। विदेशों में उन्हें मंकी मैन के नाम से जाना जाता है।
भीलवाड़ा संगीत कला केंद्र की ओर से उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। जानकीलाल की कला स्वांग के रूप में मशहूर है। उनके दादा कालूलाल और पिता हजारी लाल भी इसी कला की प्रस्तुति करते थे। इसके बाद जानकीलाल ने कला को आगे बढ़ाया। 60 साल से भी अधिक समय से जानकीलाल कभी पुलिस तो कभी भगवान का स्वांग धरकर विविध मौकों पर प्रस्तुति देते रहे हैं।
वे कई बार गाडोलिया लुहार, कालबेलिया, काबुली पठान, ईरानी, फकीर, राजा, नारद, भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती, साधु, दूल्हा, दुल्हन के रूप में लोगों के बीच प्रकट होकर मनोरंजन करते है। इस कला से जानकीलाल को विश्व में भी पहचान मिली। दिल्ली में उन्होंने एक महीने तक मंकी मैन का किरदार निभाया।
इसके बाद 1986 में लंदन, न्यूयॉर्क और वर्ष 1988 में जर्मन, रोम, बर्मिंघम और फिर लंदन में अपनी कला का प्रदर्शन किया। न्यूयॉर्क, दुबई, मेलबोर्न में भी उनकी कला को पसंद किया गया। लुप्त होती बहरूपिया कला को संभालकर यहां तक लाए जानकीलाल को इस उम्र में पद्मश्री मिलने से लोक कलाकारों में खुशी है और इस कला के पुनर्जीवित होने की उम्मीद भी है।